
भारत ने अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में कई बार ऐसा अनुभव किया है जब उसने कई पदक जीते, लेकिन स्वर्ण पदक हासिल नहीं कर सका। ऐसा ही एक उदाहरण 2020 टोक्यो ओलंपिक के दौरान हुआ, जहां भारत ने कुल सात पदक जीते—एक स्वर्ण, दो रजत और चार कांस्य। हालांकि, नीरज चोपड़ा के भाला फेंक में स्वर्ण पदक जीतने से पहले, भारत एक ऐसी स्थिति में था जहां उसके पास कई पदक थे लेकिन स्वर्ण नहीं था, जो शीर्ष सम्मान हासिल करने की चुनौती को उजागर करता है।
इसी तरह की स्थिति 2018 एशियाई खेलों के दौरान भी हुई, जहां भारत ने कुल 69 पदक जीते, जिसमें 15 स्वर्ण, 24 रजत और 30 कांस्य पदक शामिल थे। इस मजबूत प्रदर्शन के बावजूद, कुछ खेलों में भारतीय एथलीट शीर्ष स्थान के करीब पहुंचने के बाद भी उसे हासिल नहीं कर पाए, जिससे रजत और कांस्य पदकों की संख्या बढ़ गई।
ये उदाहरण खेलों में भारत की महत्वपूर्ण प्रगति को उजागर करते हैं, लेकिन साथ ही अत्यधिक प्रतिस्पर्धी आयोजनों में शिखर तक पहुंचने की चुनौती को भी दर्शाते हैं। कई पदक जीतना प्रतिभा की गहराई को दर्शाता है, लेकिन स्वर्ण पदक की कमी अक्सर यह दर्शाती है कि विश्व मंच पर सर्वश्रेष्ठ और बाकी के बीच के अंतर को पार करना कितना कठिन है।